सूचना का अधिकार अधिनियम
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 (अधिनियम संख्या 22/2005) [1] भारत की संसद द्वारा पारित एक कानून है जो भारत के नागरिकों (जम्मू और कश्मीर राज्य के उन लोगों को छोड़कर जिनके पास अपना विशेष कानून है) को सरकारी रिकॉर्ड तक गम्यता प्रदान करता है। अधिनियम की शर्तों के अधीन, कोई भी व्यक्ति किसी “सार्वजनिक प्राधिकरण” (सरकार का निकाय या राज्य का साधन) से सूचना का अनुरोध कर सकता है, जिसे शीघ्रता से या तीस दिनों के भीतर जवाब देना आवश्यक है। अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण को अपने रिकॉर्ड को कम्प्यूटरीकृत करने और कुछ श्रेणियों की सूचनाओं को सक्रिय रूप से प्रकाशित करने की आवश्यकता होती है ताकि नागरिकजन कुछ अबलंब के आधार पर औपचारिक रूप से सूचना का अनुरोध कर सूचना प्राप्त कर सकें । यह कानून 15 जून 2005 को संसद द्वारा पारित किया गया था और 13 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ । भारत में सूचना प्रकटीकरण अब तक आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम 1923 और विभिन्न अन्य विशेष कानूनों द्वारा प्रतिबंधित था, जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम द्वारा निरस्त किया गया । भारतीय विधिशास्त्र में सूचना का अधिकार मुख्यतः वाचिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सहवर्ती के रूप में विकसित हुआ है। सूचना के अधिकार में समूहों और समुदायों द्वारा सरकार तथा उसकी अभिकरणों , विभागों की गतिविधियों विशेषत: सार्वजनिक निधियों और सार्वजनिक सामग्रियों के आवंटन और उसके उपयोग के बारे में प्रकटीकरण करने की मांग की गई है।
सूचना का अधिकार अधियम का उद्देश्य
रा.ग.दि.सं. की विभिन्न गतिविधियों में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना
रा.ग.दि.सं. के अधीन सूचनाओं तक नागरिकों की सुगम्यता को सुनिश्चित करने के लिए सूचना के अधिकार की व्यावहारिकता को स्थापित करना
भारत के राजपत्र (सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005) में निर्धारित रा.ग.दि.सं. से संबंधित हर जानकारी का प्रसार करना।
सीपीआईओ और अपीलीय प्राधिकारी
सौगतो बनर्जी उप निदेशक (प्रशासन)
9831075736 , ddaoffice[dot]nild[at]gmail[dot]com
अपीलीय प्राधिकारी
ईवा स्नेहलता कुजूर वरिष्ठ व्यावसायिक चिकित्सक सह कनिष्ठ प्राध्यापक
सीपीआईओ 9748325491, eskujur[at]yahoo[dot]com